समस्यापूर्ति
कुछ भी नहीं है खास, इन दिनों।
तू जो नहीं है मेरे पास, इन दिनों।
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तू थी तो हर रात सौगात सी थी,
वो भी नहीं आती रास, इन दिनों।
जी तो रहा हूँ मेरी ज़िंदगी को मैं,
होता नहीं जीने का एहसास, इन दिनों।
साँसें और धड़कनें थम सी गई हैं,
हो गया हूँ ज़िंदा लाश, इन दिनों।
आँखें बिन देखे दिन-रात बरसे हैं,
हो गई हैं बिल्कुल चौमास, इन दिनों।
कभी तो होगी मेरे हाथ में हथेली,
शीलू को है ये विश्वास, इन दिनों।
-शीलू अनुरागी