Monday, August 28, 2023

||इक दूजे से नाराज रहे||ग़ज़ल||शीलू अनुरागी||


इक दूजे से नाराज रहे

इक दूजे से नाराज़ रहे, संकेतों से सब बात हुई
सोचो मुझे बतओ तो, क्या ये भी कोई बात हुई?

दिन तो पूरा बीत गया, यहाँ-वहाँ की उलझन में
लेकिन तेरी याद आ गई, जैसे ही फिर रात हुई

बीते जेठ से सभी मास, नैनों में नमी नहीं आई
खूब बही अश्रु धारा, जब भादों में बरसात हुई

मोर-पपीहा-दादुर बोले, जैसे ही सावन आया
यूँ बाहों की कमी खली, झूले की जब बात हुई

मैंने इस छोटे झगड़े में, बड़ा मुनाफा ये पाया
एक बार की चुप्पी से, ग़ज़लें कई इज़ात हुई

तेरी-मेरी ख़ता नहीं, प्रेम में ये स्वाभाविक है
नोक-झोंक में अनुरागी, जीत हुई न मात हुई

-शीलू अनुरागी

No comments:

Post a Comment

||थी कौन, कहाँ से आई थी||कविता||शीलू अनुरागी||

  थी कौन, कहाँ से आई थी थी कौन, कहाँ से आई थी, पूछा नहीं उसका हाल। जिसके अधर मितभाषी थे, पर नैन बहुत वाचाल। हवा के संग में उड़ता था, परचम सा ...