Sunday, February 12, 2023

करामात करती है||कविता||शीलू अनुरागी

 
6.करामात करती है

कोई जो कर नहीं सकता वो ऐसी बात करती है।
मेरे महबूब की हर इक अदा करामात करती है।

अपनी रेशम सी ज़ुल्फों को, झटकर जब वो बिखराये,
घनेरी छाँव से उनकी दिन में भी रात हो जाये,
उठा दे गर वो घूँघट को अपने नूरानी चहरे से...
चमक से उसके चेहरे की रात दिन में बदल जाये।
अमावस रात में निकले तो पूनम रात करती है।
मेरे महबूब की हर इक अदा करामात करती है।

झूमकर अपने आँचल को अगर लहराने लगती है,
सूखे पतझड़ में भी रंगीं बहारें आने लगती हैं,
काले काजल को डाले जब वो अपने नीले नैनों में..
काली-काली कातिलाना घटायें छाने लगती हैं।
ऐसे हर आँख किया बादल बिना बरसात करती है।
मेरे महबूब की हर इक अदा करामात करती है।

होकर मगन मस्ती में जब वो मुस्कुराती है,
फूल बनकर जवाँ कलियाँ भी संग में मुस्कुराती हैं,
धड़कता है जो दिल उसका तो शाखें हिलने लगती हैं..
झूमती है फिज़ा ठंडी हवायें चलने लगती हैं।
मिलाकर वो पलक अम्बर-ज़मीं इक साथ करती है।
मेरे महबूब की हर इक अदा करामात करती है।

चलती है जब वो बलखाकर नदी बलखाने लगती है,
शांत झीलें भी कल-कल के तराने गाने लगती हैं,
करती है जब मधुर झनकार उसके पैर की पायल..
जाने कितनों कि जाँ में जान यारो आने लगती है।
मरों में भी वो पैदा जोश और जज़्बात करती है।
मेरे महबूब की हर इक अदा करामात करती है।

बेमतलब बड़ी बातें ओ यारो मैं नहीं करता,
उसकी बिंदिया की बिजली से है यारो हर कोई डरता,
चाहता हूँ मैं यारो अब उसी के दिल में बस रहना..
उसके बारे में यारो अब है मुझको बस यही कहना।
नामुमकिन को भी मुमकिन वो रातों रात करती है।
मेरे महबूब की हर इक अदा करामात करती है।

-शीलू अनुरागी

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