Tuesday, February 7, 2023

बात बहुत साधारण है||ग़ज़ल||शीलू अनुरागी

 

4. बात बहुत साधारण है।

बस आँखों का दरबार हुआ है, बात बहुत साधारण है।
इक तीर जिगर के पार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

यूँ घायल होकर भी हँसना, सच मानो एक अचम्भा है,
सोचो कि ये कैसा वार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

तुम इतने नादान नहीं जो, हम तुम तुमको बतलायें कि,
दिल क्यों इतना लाचार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

दिल-धड़कन कुछ ज़्यादा है, आँखों में नींद नहीं बाकी,
इक सपना सा साकार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

इससे पहले तक जो जीवन, बुझा-बुझा सा लगता था,
उसका ही नव अवतार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

तुमने मुझको अपनाया मैं, अपनों द्वारा ठुकराया था,
मुझ पर तेरा उपकार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

मैंने तुमको, तुमने मुझको, भला आज क्यों अपनाया,
अपनों जैसा व्यवहार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

बिन पेंदी था जीवन मेरा, जिसको कि तेरा साथ प्रिय,
अब जीवन का आधार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

इसमें तुमको क्या बतलाएँ, क्या खोया और क्या पाया?
सुख-दुख का व्यापार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

अब गोल-गोल बातें कर शीलू, बातों को उलझायेे क्यों?
अरे! हमको तुमसे प्यार हुआ है, बात बहुत साधारण है।

-शीलू अनुरागी

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