Wednesday, April 27, 2022

थप्पड़ मारूँगी:लड़कियों का ब्रम्हास्त्र


यूँ तो रोजाना ही न जाने कितनी ही घटनाएँ घटती हैं लेकिन आज सुबह की घटना ने तो मानो दिल को झकझोर कर रख दिया। साथ ही ये कोई सहानुभूतित नहीं स्वानुभितित घटना है। आज सुबह दिल्ली विश्व विद्यालय के लिए घर से निकला और तिलक नगर मेट्रो स्टेशन पहुँचा। वहाँ मैंने मेट्रो स्मार्ट कार्ड में रिचार्ज के लिए कार्ड के साथ 500/-रु. का नोट वहाँ मौजूद ऊँघती हुई महिला को दिया और कहा कि 200/-रु. का रिचार्ज कर दीजिये। वहाँ एक ऊँघती हुई महिला कर्मचारी थी जिसका नाम मैं देख नही पाया या यूँ कहिए कि मेरा ध्यान ही नहीं गया। लेकिन हाँ, वो आज (27-04-2022) की सुबह की शिफ्ट में थी।  कुछ देर बाद उन्होंने मुझे कार्ड दिया और दूसरे ग्राहक का रिचार्ज करने लगी और रिचार्ज होने के बाद भी मुझे खड़ा देख उनकी निगाहों में प्रश्नचिन्ह उभर आई जो कि मेरी ओर टिकी पुतलियों में साफ-साफ देख पा रहा था मैं। उनके पूछने ने पर मैंने बड़े  प्यारे और सभ्य शब्दों में कहा कि मेरे 300/-रु. बचे हैं वो वापस दे दीजिए। मेरे रुपये माँगने पर वो मुझसे प्रश्न करने लगी कि, "अपने कितने का कहा था?" मैंने कहा, "200/- का।" वो बोली "आपने नहीं बताया और मैंने बोला कि मैंने बताया था।" इस पर काफी देर जब बात हुई तो मैंने कहा कि "वैसे तो मैंने बोला था कि 200/- का रिचार्ज करना है, फिर भी यदि आपने नहीं सुना तो आपने पूछा क्यों नहीं?" वो बोली, "मैं यहाँ पूछने के लिए नहीं बैठी हूँ कि कितने का कारना है।" मैंने कहा, "आपको पूछना चाहिए आपने बिना पूछे 500/-रु. का रिचार्ज कैसे कर दिया?" वो बड़े ही अकड़ भरे शब्दों में बोली -"पूछना मेरा काम नहीं है।" वो अपनी गलती मान ही नहीं रही थी। मैंने पूर्णतः हैरानी भरे लहजे में पूछा- "यदि मैं 2000/- रु. का नोट दूँगा तो क्या पूरे का रिचार्ज कर देंगी आप, पूछोगी नहीं?" वो हिमालय के बराबर घमंड धारण किये कुर्सी पर टिकट हुए बोली-"मुझे जितने का नोट दोगे उतने का ही रिचार्ज कर दूँगी, पर पूछूँगी नहीं।" इस पर मुझे भी थोड़ा गुस्सा आया और मैंने ज़ोर देकर कहा, "आप पैसे डिडक्ट कर लो तो वो बोली ये मेरे बस की बात नहीं है।" 

मैंने कहा जब आप के बस की नहीं है तो आपने करने से पहले पूछा क्यों नहीं?

मुझे मेरे पैसे चाहिए क्योंकि आगे मेरे खर्चे के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास। 

बस इतने में ही उन्होंने ने बदतमीज़ी भरे शब्दों में कहा, "तू जा यहाँ से, पैसे वापस नहीं होंगे।" 

मैंने चेतावनी दी कि पहले तो आप तमीज़ से बात करिए। वो बोली "अबे तू जा यहाँ से, एक बार कह दिया कि पैसे वापस नहीं होंगे।"

 अब जब मुझे गुस्सा आया तो मैं भी तू-तड़ाक से बात की। अब उन्हें बुरा लगा और वो कहने लगी "बदतमीज़ी मत कर वरना थप्पड़ मारूँगी।"

मैंने पूरी तेज़ आवाज़ में बोला- "आ, हिम्मत है तो तू थप्पड़ मार कर दिखा, तेरे भी दो तीन घूँसे न जड़ दिए तो कहियो।" मेरे लिए क्या था कर नहीं तो डर नहीं। पर यहाँ पर अधिकतर लोग मुझे गलत कहेंगे कि तुझे ऐसे शब्द नहीं बोलने चाहिए थे। वो लड़की है उससे मर्यादित भाषा में बात करनी चाहिए थी। कई तो ये भी सोचेंगे कि यदि लड़का होता तो मैं ऐसा नहीं बोलता। लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं ग़लत नहीं हूँ। मैं समझ तो चुका था कि वो अपने लड़की होने का गलत फायदा उठाने लगीं है।

मैंने यह देखा है कि अक्सर लड़कियाँ जब ग़लत होती हैं और उनके पास बचाव का कोई और रास्ता नहीं होता या फिर उन्हें किसी को नीचा दिखाना होता है और उनके पास एक ब्रम्हास्त्र होता है "थप्पड़ मारूँगी, तमीज़ में बात कर ले।" ये वाक्य सुनते ही न जाने कितने आसपास के पुरुष और स्त्रियाँ उसकी सेना बनकर उसके पक्ष में लड़के को मारने पीटने को तैयार हो जाते हैं। फिर वो भूल जाते हैं कि दुनिया में कुछ सही और गलत भी होता है।

अब उनके फैसले का मानदंड लिंग पर आधारित होता है। लड़की यानी सही और लड़का मतलब गलत। अब वो स्वंय को वीरांगना लक्ष्मीबाई से कम नहीं समझती। साथ ही पूरे दिन अपनी इस वीरता की चर्चा अपने मित्रों और रिश्तेदारों से करती हैं और आने वाली कई पीढ़ियों तक एक वीरगाथा के समान अपनी पुश्तों को सुनाती हैं।

इसके बाद मेरी तेज़ आवाज़ सुनकर आर्मी ऑफिसर्स आये और उन्होंने ने मुझसे कहा कि आप तमीज़ से बात करिए वो लड़की है और वैसे भी आपके पैसे हैं तो आपके कार्ड में आप ही के पास। पर मेरा प्रश्न ये है कि

क्या मेरा कोई सम्मान नहीं??

वो लड़की है तो क्या दाल ही दाल खाएगी? उन्होंने ने जवाब तो कोई नहीं दिया पर उनकी खामोशी चीख-चीख कर कह रही थी, हाँ!!हाँ.!!हाँ..!!

मैं लड़का हूँ तो क्या मुझे कहीं भी अपमानित किया जा सकता है? साथ ही ये भी उम्मीद की जाती है कि मैं उस अपमान के घूँट को निर्विरोध सह जाऊँ।

रही बात पैसों की तो क्या मैं रिक्शे का किराया मेट्रो कार्ड से दे सकता था?

क्या दोपहर का खाना मैं मेट्रो कार्ड से पैसे देकर खा सकता था?

साथ ही आर्मी अफसर ने ये भी कहा कि आप जाईये वरना आपके ऊपर फाइन(दंड) लगाया जाएगा।

अब देखिए एक तो मेरे जरूरत से अधिक के पैसों का रिचार्ज कर दिया गया न कि मेरे कहे अनुसार। दूसरे मेरे दिन के खर्च के लिए जो पैसे थे वो मेट्रो कार्ड में डाल दिये गए जिससे मेरा आगे का सफर क्या मेरा भोजन तक नहीं हो पाए। ऊपर से गलती कर के भी मेट्रो की एक कर्मचारी लड़की होने का फायदा उठाते हुए थप्पड़ मारने की धमकी देकर मुझे अपमानित करती है। उसके बाद विरोध करने और अपने पैसों की माँग करने पर वो अपनी गलती नहीं मानती बल्की मेरे ही ऊपर मेट्रो के द्वारा फाइन(दंड) लगाने की बात कही जाती है। ये तो वही बात हुई कि जिसकी लाठी, उसी की भैंस।

यदि ये भी मान लिया जाए कि ग़लतफ़हमी की वजह से ऐसा हुआ तो भी उसे अपनी ग़लती तो स्वीकारनी चाहिए पर नहीं, वो तो अपनी गलती स्वीकार करने की बजाए  उल्टे मुझी पर इल्ज़ाम लगाकर थप्पड़ मारने, जुर्माना लगाने आदि की धमकी दिला देती है।

क्या यही है मेट्रो का सभ्य स्टाफ??

क्या इसी प्रकार ग्राहक की सेवा करते हैं मेट्रो कर्मचारी??

इतना बुरा व्यवहार तो कोई अनपढ़ व्यक्ति भी नहीं करता अपने ग्राहक के साथ।

साथ यदि कोई मित्र न मिला होता तो पैसे न होने के कारण दिन भर भूखे पेट ही रहना पड़ता।

इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

मैं विश्विद्यालय मेट्रो स्टेशन तक तो पैदल आ गया।

पर तिलक नगर से निलोठी गाँव तक मुझे पैदल जाना पड़ा? इसकी भरपाई कौन करेगा??

दिल्ली मेट्रो से अपील है कि वो अपने कर्मचारियों के व्यवहार में सुधार करें। उन्हें ये भी समझाएँ कि लड़का का अर्थ ग़लत नहीं होता।

साथ ही दिल्ली सरकार से ये अपील है कि सही ग़लत देखें लिंग के आधार पर फैसला न करें। लड़का और लड़की में यदि समानता लाना ही चाहते हैं तो व्यवहार भी समानता का होना चाहिए। मैं स्वयं महिला समर्थक हूँ किंतु सही अर्थ में। महिलाओं से निवेदन है कि नारीवादी बनें पुरुष विरोधी नहीं।

वैसे तो ये किसी एक जगह की बात नहीं है। ये सम्पूर्ण भारत में हो रहा है। स्त्री को बढ़ावा कम दिया जा रहा है और पुरुष शोषण अधिक किया जा रहा है। अब उत्तर प्रदेश की ही एक घटना ले लो जिसमें एक लड़की ने एक लड़के को भरे चौराहे पर थप्पड़ ही थप्पड़ मारे थे। लेकिन सोचो कि वह बच क्यों गई??

वो इसलिए क्योंकि वो लड़की थी। लड़की मारे तो निडर, बहादुर, क्रांतिकारी और वीरांगना किंतु यदि लड़का विरोध में हाथ भी पकड़ लेता तो वो बदतमीज़ कहलाता और साथ ही उस पर महिला के जिस्म को गलत मकसद से छूने का आरोप सिद्ध हो जाता जिसके लिए उसको जेल में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता था। यदि बच भी जाता तो भी उसके चरित्र और मान-सम्मान की तो हत्या हो ही जानी थी। पर यदि कुछ न होता तो भी भरे बाजार बेवजह पिटने के कारण जो उसकी आत्मा को ठेस पहुँची उससे उसका आत्मविश्वास तो शायद उसे लानत देते हुए उससे हमेशा के लिए दूर चला जाता। लेकिन लड़की को सज़ा नहीं मिलेगी क्योंकि अब तो वो अबला है।

साथ ही यदि लडकियाँ और महिलाएँ समानता चाहती हैं जो कि होनी भी चाहिए, तो मौका परस्ती छोड़ दें। ये नहीं कि जहाँ लाभ दिखा बराबरी की माँग की और जहाँ लाभ दिखा अबला बन गए। सरकार जो कानून उनकी सुरक्षा के लिए बनाती है उनका प्रयोग अपने बचाव के लिए करें, किसी पर झूठे इल्ज़ाम लगाकर उसके व्यक्तित्व और चरित्र की हत्या करने के लिए नहीं।

लड़का-लड़की एक समान के नारे के फलस्वरूप लड़कों ने तो लड़की को अपने समकक्ष समझा, एक समान समझा लेकिन लड़कियों ने लड़कों को मात्र एक सामान समझा है जिसे वो कभी भी कैसे भी बरत सकती हैं।

-शीलू अनुरागी

27-04-2022


2 comments:

  1. भाई किसी को Paytm या phonepe करके पैसे ले लिया कर !! ऐसा कई लोगों के साथ होता है जब पैसे नहीं होते but mobile होता है !! किसी भी दुकान पर जा और पैसे ले ले उसके बदले में !!
    आज k time में mobile ho जेब में तो सब कुछ है !! 👍

    बाकी तो जो गलत करता है उसका भी गलत होना तय रहता है 👍👍

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    1. ठीक है भाई। टिप्पणी के माध्यम से अति महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद।👍

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