Thursday, February 2, 2023

विचार कर रहा हूँ||ग़ज़ल||शीलू अनुरागी

 

विचार कर रहा हूँ

आज-कल मैं कुछ ऐसा, व्यापार कर रहा हूँ।
हर ग्राहक पर कुछ न कुछ, उधार कर रहा हूँ।

तुम पर विचार करने का, विचार क्यों किया?
मैं इन दिनों बस इक यही, विचार कर रहा हूँ।

धधके है दिल की भट्टी, और प्रेम जल रहा है,
अपने आँसुओं को अब मैं, अंगार कर रहा हूँ।

अब तक मेरी नज़र में, निराकार सा रहा जो,
उसको ही रात-दिन मैं, साकार कर रहा हूँ।

कि वो मेरे लिए है अब, ज्यों तीस फरवरी है,
इक मैं हूँ कि उसी का, इन्तज़ार कर रहा हूँ।

हृदय सत्ता को पाकर, जो लूट गया सब कुछ,
इस बार भी मैं उसकी ही, सरकार कर रहा हूँ।

अवगुण में तेरे सद्गुण ही, खोजता फिरूँ मैं,
ये किस तरह का तुझसे, मैं प्यार कर रहा हूँ?

शीलू तुम्हें पता हैं सब, शंकाओं के निवारण,
क्यों मैं उसी पर सब कुछ, निसार कर रहा हूँ।

-शीलू अनुरागी

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